समाचार-पत्रें, पत्रिकाओं और टेलीविजन पर आपने ऐसी अनेक घटनाएँ देखी-सुनी होंगी जिनमें लोगों ने बिना किसी लालच के दूसरों की सहायता की हो या ईमानदारी से काम किया हो। ऐसे समाचार तथा लेख एकत्रित करें और कम-से-कम दो घटनाओं पर अपनी टिप्पणी लिखें।


ऐसे दो समाचार जिनमें ईमानदारी तथा बिना लालच के दूसरों के लिए काम किया गया हैः

1. बच्चों को मुफ्त कोचिंग क्लास दे रहा 20 साल का यह युवा


एक तरफ जहां समाज के ठेकेदार प्रोफेशनल कोचिंग क्लासेज क नाम पर शिक्षा को बेचने और खरीदने का धंधा चला रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ 22 साल का रोहित झुग्गी-बस्ती में रहने वाले बच्चों को मुफ्त कोचिंग क्लास दे रहा है। जिस उम्र में युवा अपने करियर को चमकाने की रेस का हिस्सा बने हुए हैं। उस उम्र में रोहित मासूम बच्चों के हाथों में कलम थमाकर उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर रहा है।


रोहित बताते हैं कि बचपन में उन्होंने बड़ी मुसीबतें उठाकर अपनी पढ़़ाई पूरी की हैं। इसलिए वह बच्चों को शिक्षा का पाठ पढ़ाकर उन्हें अपने कदमों पर खड़ा होने के लिए मदद कर रहे हैं। उनकी कोचिंग क्लास शाम को रोहिणी के एक पार्क में होती है। करीब 2 साल से चल रही इस मुफ्त कोचिंग क्लास में रोजाना 80 से 100 बच्चे आते हैं। यहां आने वाला हर बच्चा बेहद गरीब परिवार से ताल्लुक रखता है। यह नेक काम करने में रोहित के कुछ दोस्त भी उसकी मदद करते हैं। रोहित कहते हैं कि इन बच्चों को शिक्षा का महत्व समझाना ही उनकी जिंदगी का लक्ष्य है।


अमर उजाला, 05 जनवरी 2019, नोएडा संस्करण


2. एचआईवी पीड़ित बच्चों के लिए छोड़ी नौकरी


मैं उस वक्‍त मेडिकल की पढ़ाई कर रही थी। पढ़ाई के साथ-साथ एक एनजीओ के साथ भी जुड़ गई थी, जो एड्स से पीड़ित लोगों के लिए काम करती थीं। एनजीओ में वालंटियर का काम करने के साथ-साथ पूरा ध्‍यान अपनी पढ़ाई पर केंद्रित कर दिया था। इस दौरान देखती थी कि बहुत सारे ऐसे बच्‍चे थे, जिन्‍हें HIV की बीमारी अपने माता-पिता से मिली थी। उनकी बीमारी एडंवास स्‍टेज में पहुंचने के बाद उनकी मौत हो गई और अब बच्‍चे उनके रिश्‍तेदार के भरोसे थे। मगर वो रिश्‍तेदार ढंग से उनको दवाईयां तक नहीं दे रहे थे।


ऐसी कई घटनाओं ने मुझे अंदर से हिला कर रख दिया। इसलिए मैंने ऐसे लोगों के साथ वक्त बिताना शुरू कर दिया। इनमें एक मासूम बच्ची भी थी, जो बहुत कम बातें करती थीं। मैं वक्त निकालकर उस लड़की से बात करने के लिए उसके पास बैठ जाती थी। इसके लिए मुझे अपनी नौकरी तक छोड़नी पड़ी। उससे कुछ बुलवाने की कोशिश करती थी। इसी कोशिश में कई-कई घंटे बीत जाते थे फिर कुछ दिन गुजरने लगे। मगर मैं बच्‍ची को कुछ बुलवा नहीं पाई थी। कई बार अपनी कोशिश में असफल होने पर थोड़ी सी परेशान रही फिर भी मैंने उम्‍मीद नहीं छोड़ी। आज वही बच्ची अपनी भयंकर बीमारी के बारे में जानते हुए भी खुलकर हंसती बोलती है।


न्यूज 18, 07 मार्च 2019, नोएडा संस्करण


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